Sai Baba Episode in Hindi ( 1341 - 1346 )

जीवन में संतुलन बनाना क्यों अनिवार्य है ?Sai Baba Episode (1341 -1346 )

इस लेख Sai Baba Episode (1341 -1346 ) में आप यह समझेंगे कि जीवन में संतुलन बनाना क्यों अनिवार्य है ?

 Sai  Baba Episode in Hindi ( 1341 - 1346 )

हम में से बहुत लोग ऐसे हैं जो साई की महिमा को जाने के लिए बेकरार रहते हैं क्योंकि साई के भक्त साई की लीलाओं के बारे में न जाने ऐसा तो हो ही नहीं सकता आज आप ऐसी कहानी जाने वाले हैं जिसके जरिए आपके सोचने का और समझने का तरीका बदल जाएगा ।

इस कहानी में दो शख्स हैं एक का स्वभाव है बेहद कठोर और दूसरे का स्वभाव है विनम्र और शांत । जिनका स्वभाव कठोर है उसे शख्स का नाम है दिगंबर और नर्म दिलवाले का नाम है संतोष

Sai Bhakto ki kahani in Hindi 

इन दोनों के परिवार उनके स्वभाव के कारण बेहद परेशान रहती हैं जिस इंसान का स्वभाव कठोर है वह अपने पापा के तबीयत को लेकर चिंतित रहता है । अचानक ही उनके पापा की तबीयत खराब होने के कारण वह शिर्डी से होते हुए बड़े अस्पताल जा रहे थे लेकिन रास्ते में दिगंबर बैलगाड़ी वाले को चिल्लाने लगता है और कहता है कि तुम्हें मालूम है कि मेरे बाबा की तबीयत खराब है फिर भी तुम बैलगाड़ी धीरे चला रहे हो तुम्हें नहीं मालूम है कि मैं कौन हूं ?

ऐसा ठोस जमाते हुए वह लोगों को हमेशा डराया करता था ।रास्ते में बैलगाड़ी अचानक से गढ़े में फंस जाती है और बैलगाड़ी वाला उन्हे रास्ते में उतरने को कहता है ताकि वह अपनी बैलगाड़ी को गढ़े से निकाल ले ।

दिगंबर के पिताजी साई नाथ के भक्त होते हैं उन्हें साई नाथ के दर्शन होते हैं और वह कहते हैं कि तुम शिर्डी जरूर होकर जाना ।

दिगंबर के पिताजी का स्वास्थ्य साई से मिलने के बाद स्वास्थ्य थोड़ा ठीक हो जाता है वह कहते हैं कि मैं शिर्डी के साईं नाथ से मिलने के लिए जाना चाहता हूं अब वही मेरा वैध है और वही मेरा स्वास्थ्य ठीक कर सकते हैं ।

दिगंबर थोड़ा कठोर और चिड़चिड़ा स्वभाव का होने के कारण वह कहता है कि साई कोई डॉक्टर नहीं है आपको जाना है तो मैं सबसे बड़े महंगी अस्पताल पर लेकर जाता हूं ताकि आप स्वास्थ्य अच्छा हो जाए लेकिन उसके पिताजी उसकी एक नहीं सुनते और कहते हैं अगर तुम मुझे प्यार करता है तो मुझे शिर्डी ही लेकर जाउ नही तो यहीं पर मरने के लिए छोड़ दे ।

अपने पिता की ऐसी बातें सुनकर दिगंबर विवश हो जाता है ।

शिर्डी में रुकने के लिए रास्ते में उसे कुछ खाने का मन करता है तो वह ढाबे में खड़े होकर खाने का सामान मांगते हैं लेकिन खाने वाली पदार्थ में एक बाल निकल आता है जिसके कारण दिगंबर बहुत गुस्सा हो जाता है और ढाबे के मालिक को गुस्से में कहता है कि मैं तुम्हारा ढाबा सील करवा दूंगा क्योंकि तुमने नियम कानून फॉलो नहीं किए हैं ।

तुम्हें यात्रियों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए कार्य करना चाहिए लेकिन तुम अपने कार्य में लापरवाह हो जिसकी सजा तुम्हें जरूर मिलेगी ।

स्वभाव का कठोर होने के कारण वह किसी से भी निमार्तापूर्ण बात नहीं करता था दिगंबर का पिताजी बेहद परेशान थे क्योंकि वह चाहता थे कि दिगंबर नरम और सरल स्वभाव का बन जाएं ।

दूसरी और संतोष जिसका पैसा उसी के दोस्त ने उधार में लिया था लेकिन उसका दोस्त उसे पैसे वापस करने से टाल -मटोल कर रहा था जिसके कारण उसके घर की व्यवस्था बिगड़ रही थी ।

देखते ही देखते हालात इतने बदल गए कि उसे अपने दुकान के किराए के लिए भी पैसे जुटाना मुश्किल हो गए ।

संतोष की पत्नी ने कहा कि तुम अपने पैसे हक से क्यों नहीं वापस मांगते हो ?

संतोष का कहना है कि कोई भी कार्य ऊंची आवाज में नहीं होता अगर उसके पास पैसे होते तो वह मुझे दे देता लेकिन यह बात संतोष की पत्नी को गलत लग रही थी उसका कहना है कि अगर सामने वाला व्यक्ति आपके पैसे नहीं दे रहा है तो उसे अपने पैसे हक से मांगो और जहां बोलना उचित हो वहां जरूर बोलो ।

संतोष से परेशान होकर वह कहती है कि मैं अपने मायके जाना चाहती हूं ।

संतोष मुस्कुरा कर कहता है क्या बात है ! मेरी शिकायत अपने माता-पिता से करना चाहती हो ?

वह कहती है कि मैं बचपन से शिर्डी में रही हूं शिर्डी के पालनहार साई बाबा ही तुम्हें सही रास्ते लेकर आ सकते हैं मुझे वचन दो कि हम जल्द ही शिर्डी जाएंगे ।

दिगंबर और संतोष जब साई के दर पर पहुंचते हैं तो दिगंबर वहां पर भी चिल्लाना शुरू कर देता है क्योंकि एक महिला कतार को तोड़कर साई के सामने आ जाती है और कहती है कि मेरा बच्चा बेहद बीमार है साई आप कृपा करें ।

Rules को तोड़ता देखकर दिगंबर गुस्से से लाल हो जाता है और कहता है कि Rules को फॉलो करने के लिए रूल्स बनाए जाते हैं ना कि तोड़ने के लिए

वह कहती है कि मेरा बच्चा बेहद बीमार है और मैं जल्द से जल्द उसके पास जाना चाहती हूं इसलिए मैंने उल्लंघन किया ।

साई ने दिगंबर को समझाया और कहा Rules को follow करना अच्छी बात होती है लेकिन मानवता को नहीं भूलना चाहिए ।

वह किसी की कहां सुनने वाला !वह जल्द से जल्द शिर्डी से जाना जाता था इसलिए वह साई से कहता है कि आप मेरे बाबा का उपचार करें ताकि हम यहां से जल्दी ही जा सके वहीं दूसरी ओर संतोष की पत्नी का कहना है कि साई आप हमारी स्थिति जानते हैं आप ही कुछ बताएं कि हम आगे क्या करें ?

साई कहते हैं दिगंबर और संतोष Dixit wada में कुछ दिन रहेंगे जो भी वहा श्रद्धालुओं का मन जीत लेगा वह शिरडी से जा सकता है ।

Sai Bhakto ki Pariksha 

साई की महिमा सिर्फ साई ही जाने ,साई अपने एक भक्त को दीक्षित वाड़ा भेजते हैं ।

वह एक भक्त जाकर बोलता है कि मुझे बहुत भूख लगी है वे दोनों पूछते हैं कि तुम क्या खाना चाहोगे ? वह भक्त कहता है कि मुझे खिचड़ी भी चलेगी ।

दिगंबर का स्वभाव तीखा होता है इसलिए वहां खिचड़ी भी तीखी बना देता है और वहीं दूसरी ओर संतोष का स्वभाव सरल और नर्म रहता है तो वह खिचड़ी फीकी बना देता है ।

वह भक्त न तीखी खा पाता है और ना ही फीकी वह कहता है कि ऐसा खाना मैं खाऊंगा तो मेरी सेहत ही खराब हो जाएगी, वही साई बाबा आ जाते हैं और कहते हैं कि इन दोनों खिचड़ियों को मिलाकर खाओ तुम्हें अच्छी लगेगी ।

वह भक्त साई की वचनों को मानते हुए खिचड़ी को मिलता है और खाने लग जाता है ।

अब उसे वह खिचड़ी बेहद स्वाद लग रही थी और साई दिगंबर और संतोष को देखते हुए कहते हैं कि जीवन में संतुलन बेहद मायने रखता है ।

Sai ki lila 

💞साई ने दूसरा प्रस्ताव उन दोनों के सामने रखा और कहा कि तुम इस प्रस्ताव में हार गए हो लेकिन जो अब मैं प्रस्ताव तुम्हें देने वाला हूं उसमें तुम्हारे पास कोई आएगा ,जो मदद मांगेगा , उसकी तुम मदद करके उसे खुश कर दो तब आप दोनों शिरडी से जा सकते हो ।

दिगंबर के पिताजी ने संतोष को कहा कि मुझे पूजा करने के लिए एक फूल की आवश्यकता है तुम मेरे लिए ला सकते हो क्या ?

संतोष की पत्नी ने दिगंबर को कहा कि मैं रजाई बनाने के लिए दी थी क्या आप वह राजाई इस जगह से ला सकते हैं क्या ?

दोनों काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन जैसे दिगंबर का स्वभाव है गुस्सा और चिड़चिड़ा करना वह इस स्वभाव से उस रजाई वाले से बात करने लगा क्योंकि रजाई उसे पतली लग रही थी तो वह गुस्से से चिल्ला के कहने लगा कि जब रजाई तुम पतली बना रहे हो तो पैसे पूरे क्यों ले रहे हो , अपने ग्राहक से धोखा क्यों कर रहे हो ?

संतोष जब फूल लेने के लिए बगीचे में गया तो बगीचे का मालिक नहीं था तो उसने सोचा कि क्यों ना मैं एक फूल तोड़ लूं लेकिन वही बगीचे का मालिक अचानक से आ जाता है और संतोष को चोर समझ लेता है ।

तुम्हें किसने कहा कि मेरे बगीचे से बिना पूछे फूल ले लो ?संतोष का स्वभाव शांत रहने का था इसलिए वह बोल ही नहीं पाया जो वह कहना चाहता था ।

जब वह कुछ नहीं बोल पाया तो बगीचे के मालिक ने घसीटते हुए उसे कहा कि मुझे बताओ कि तुम्हें किसने कहा कि बगीचे से फूल ले लो ?वह दिगंबर के पिताजी के पास ले जाता है और कहता है कि इन्होंने कहा था कि मुझे एक फूल की आवश्यकता है ।

बगीचे का मालिक दिगंबर के पिताजी को खड़ी खोटी सुनाते हैं जिसके कारण दिगंबर के पिताजी कहते हैं कि तुम्हारे चुप रहने के कारण मुझे कई कुछ सुना पड़ा ।

क्या तुम बात नहीं सकते थे कि आराधना के लिए मुझे सिर्फ एक फूल की आवश्यकता है । तुम्हारे ना बोलने के कारण मुझे कितना कुछ सुना पड़ा ।अब पता चला ! कि तुम्हारा परिवार तुम्हारे इस कमी के कारण कितना परेशान रहता होगा ।

दिगंबर रजाई लेकर आया और मन ही मन सोच रहा था कि मैं रजाई के पैसे कम दिए हैं इस बात से वह खुश हो जाएगी लेकिन जैसे ही दिगंबर संतोष की पत्नी को रजाई पकड़ता है वही रजाई बनाने वाले आ पहुंचते हैं और कहते हैं कि इस व्यक्ति के व्यवहार ने हमें बहुत दुख पहुंचा है इन्होंने कहा कि रजाई बहुत पतली बनी है जबकि तुमने ही कहा था कि मुझे रजाई पतली बना कर देना जो मैं गर्मियों में भी ले सकूं ।

यह बात सुनने के बाद वह कहती है मैं इनके तरफ से माफी मांगती हूं और आगे से याद रखेगी कि अपना कार्य स्वयं करना ही सही रहता है । दिगंबर यह बात सुनकर परेशान हो गया और संतोष की पत्नी ने कहा कि बात में विनर्माता और सरल स्वभाव होना चाहिए ताकि हम लोगों का दिल न दुखाएं ।

वह कहती है कि मुझे अब पता चला कि आपका स्वभाव के कारण आपका परिवार क्यों इतना दुखी रहता है आपसे इतना छोटा सा काम नहीं हो पाया !

दोनों साईनाथ के पास पहुंचते हैं और साईनाथ कहते हैं कि इस छोटे से कार्य को भी अच्छे से नहीं निपटा पाएं क्योंकि तुम्हारा व्यवहार ही गलत है ।

साई नाथ कहते हैं कि मैं तुम्हें एक आखरी कार्य देता हूं अगर इस कार्य में तुम सफल हो गए तो तुम शिरडी से बाहर जा सकते हो ।वह कहते हैं कि मैं एक फकीर हूं मुझे दो वक्त का खाना तुम खिला सको तो तुम्हारा कार्य हो जाएगा ।

वे दोनों कहते हैं कि हम इतनी क्षमता रखते हैं कि हम आपको दो वक्त का खाना खिला सकते हैं ।साई मुस्कुराते हुए कहते हैं कि मैं एक फकीर होने के कारण मैं भिक्षा लिया हुआ ही खाना खाता हूं और भिक्षा जब तुम दोनों मिलकर लाओंगे तब ही तुम्हारा कार्य समाप्त होगा ।

वे दोनों चौक जाते हैं क्योंकि उन्हें यह कार्य बहुत अजीब लग रहा था क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में कभी भी भिक्षा नहीं मांगी थी लेकिन अपनी कमी को दूर करने के प्रयास में वे दोनों कहते हैं कि आपका दिया हुआ कार्य हम जरूर करेंगे ।

जब वे भिक्षा मांगने निकलते हैं जिन लोगों को दिगंबर ने नीचा दिखाया था उन लोगों का सामना होना शुरू हो जाता है ।

एक के बाद एक दिगंबर को इंसान नीचे दिखा रहा था लेकिन संतोष उनसे कहने लगा कि अभी दिगंबर मेरे साथ हैं और जो पिछला वक्त में जो कुछ भी इन्होंने आपके साथ किया उसके लिए मैं आपसे माफी मांगता हूं कृपया उसे बात को भूल जाएं ।

फिर एक बार एक ऐसा व्यक्ति उन्हें भिक्षा मांगते मिल गया जो संतोष की चुप्पी का कारण बहुत फरेब कर चुका था ।

संतोष किसी दफ्तर पर कार्य करता था लेकिन उसे पर झूठा इल्जाम लगाया कि उसने चोरी की है जबकि चोरी उस व्यक्ति ने की होती है जो भिक्षा मांगते हुए उन्हें मिल जाता है ।

वह व्यक्ति दिगंबर के सामने संतोष को नीचा दिखाना शुरू कर देता है । बातों ही बातों में दिगंबर कहता हैं कि संतोष चोरी कर सकता है मैं मान ही नहीं सकता क्योंकि इसका व्यवहार में कई दिनों से देख रहा हूं ,इसके संस्कार में फरेप करना है ही नहीं !

संतोष उन्हें बताता है कि मेरी चुप्पी के कारण इन्होंने बहुत फरेब दफ्तर में किए हैं और उन सब फरेबो का इल्जाम मेरे सर में डाल दिया फिर भी मैं बोल नहीं पाया ।

तब दिगंबर संतोष को समझाते हुए कहता हैं कि मैं अब समझा कि साई ने हमें भिक्षा मांगने के लिए एक साथ क्यों रखा है ,साई की महिमा में अब समझा हूं !

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वे दोनों पुलिस स्टेशन जाते हैं और उसे गद्दार की बातें बताते हैं । पुलिस वाला कहता है कि उस व्यक्ति के खिलाफ काफी रिपोर्ट्स है लेकिन witness ना होने के कारण वह हर बार बच जाता है ।

संतोष को साई के वचन याद आते हैं कि हमेशा सच का साथ देना चाहिए इसलिए वह कहता है मैं witness बनने के लिए तैयार हूं ।

पुलिस वाले उस चोर को पकड़ लेते हैं और संतोष की ईमानदारी की बातें सबको पता चल जाती हैं ।

उसके दफ्तर से संतोष को एक बड़े पोस्ट का ऑफर आता है और वह हंसते मुस्कुराते उसे proposal को एक्सेप्ट कर लेता है ।

इस प्रकार वह दोनों अपनी कमियों को दूर कर पाते हैं और समझते हैं कि जीवन में संतुलन बनाना क्यों अनिवार्य है ?

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Sai Baba ki shiksha 

💞यदि हम अपने जीवन में ज्यादा तीखा और कठोर शब्दों का चयन करेंगे तो हमारे जीवन नर्क बन जाएगा और वहीं अगर हम ज्यादा सरल और नर्म बनकर रहेंगे तो हम अपना जीवन ढंग से नहीं जी पाएंगे इसलिए संतुलन जीवन में रखना बेहद अनिवार्य है ।

साई के कई प्रयत्नों के बाद संतोष और दिगंबर को यह बात समझ आ गई की स्वभाव तीखा और नरम दोनों ही रखना गलत हो जाता है यदि संतुलन बनाए रखें तो जीवन को सही ढंग से जिया जा सकता है ।

उम्मीद है दोस्तों आपको इस लेख Sai Baba Episode (1341 -1346 ) में बताई गई जानकारी समझ आ गई हो गई । कृपया इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि अन्य लोगों का भी मार्गदर्शन हो पाएं ।

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